रथयात्रा की कहानी

Please share!

   पुरी के कई नाम 

पुरी एक ऐसा स्थान है, जिसे हजारों वर्षों से कई नामों जैसे- नीलगिरी, नीलाद्रि, नीलांचल, पुरुषोत्तम, शंखश्रेष्ठ, श्रीश्रेष्ठ, जगन्नाथ धाम, जगन्नाथ पुरी – से जाना जाता है।

image Source Google

भगवान जगन्नाथ का रथ- इसके तीन नाम हैं जैसे- गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष आदि। 16 पहियों वाला ये रथ 13 मीटर ऊंचा होता है। रथ के घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व है। ये सफेद रंग के होते है। सारथी का नाम दारुक है। रथ पर हनुमानजी और नरसिंह भगवान का प्रतीक होता है। रथ पर रक्षा का प्रतीक सुदर्शन स्तंभ भी होता है। इस रथ के रक्षक गरुड़ हैं। रथ की ध्वजा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाती है। रथ की रस्सी को शंखचूड़ कहते हैं।

गुंडिचा मंदिर में ही बनी थी जगन्नाथ की पहली प्रतिमा 

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। यह यात्रा गुंडिचा मंदिर तक जाकर पुन: आती है। ऐसी मान्यता है कि इसी गुंडिचा मंदिर में देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्राजी की प्रतिमाओं का निर्माण किया था। इसलिए गुंडिचा मंदिर को ब्रह्मलोक या जनकपुरी भी कहा जाता है।

रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ कुछ समय इस मंदिर में बिताते हैं। इस समय गुंडिचा मंदिर में भव्य महोत्सव मनाया जाता है। इसे गुंडिचा महोत्सव कहते हैं। गुंडिचा मंडप से रथ पर बैठकर दक्षिण दिशा की ओर आते हुए श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्राजी के जो दर्शन करता है, वे मोक्ष के भागी होते हैं।

रथयात्रा की कहानीः मालव के राजा को पहली बार दिए थे दर्शन

पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने की परंपरा काफी पुरानी है। इस रथयात्रा से जुड़ी कई किवंदतियां भी प्रचलित हैं। उसी के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने की परंपरा राजा इंद्रद्युम ने प्रारंभ की थी। यह कथा संक्षेप में इस प्रकार है-

कलयुग के प्रारंभिक काल में मालव देश पर राजा इंद्रद्युम का शासन था। वह भगवान जगन्नाथ का भक्त था। एक दिन इंद्रद्युम नीलांचल पर्वत पर गया तो उसे वहां देव प्रतिमा के दर्शन नहीं हुए। निराश होकर जब वह वापस आने लगा, तभी आकाशवाणी हुई कि शीघ्र ही भगवान जगन्नाथ मूर्ति के स्वरूप में पुन: धरती पर आएंगे। यह सुनकर वह खुश हुआ।

एक बार जब इंद्रद्युम पुरी के समुद्र तट पर टहल रहा था, तभी उसे समुद्र में लकड़ी के दो विशाल टुकड़े तैरते हुए दिखाई दिए। तब उसे आकाशवाणी की याद आई और उसने सोचा कि इसी लकड़ी से वह भगवान की मूर्ति बनवाएगा। तभी भगवान की आज्ञा से देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा वहां बढ़ई के रूप में आए और उन्होंने उन लकड़ियों से भगवान की मूर्ति बनाने के लिए राजा से कहा। राजा ने तुरंत हां कर दी।

तब बढ़ई रूपी विश्वकर्मा ने यह शर्त रखी कि वह मूर्ति का निर्माण एकांत में करेंगे, यदि कोई वहां आया तो वह काम अधूरा छोड़कर चले जाएंगे। राजा ने शर्त मान ली। तब विश्वकर्मा ने गुण्डिचा नामक स्थान पर मूर्ति बनाने का काम शुरू किया। एक दिन भूलवश राजा बढ़ई से मिलने पहुंच गए।

उन्हें देखकर विश्वकर्मा वहां से अन्तर्धान हो गए और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी रह गईं। तभी आकाशवाणी हुई कि भगवान इसी रूप में स्थापित होना चाहते हैं। तब राजा इंद्रद्युम ने विशाल मंदिर बनवा कर तीनों मूर्तियों को वहां स्थापित कर दिया।

भगवान जगन्नाथ ने ही राजा इंद्रद्युम को दर्शन देकर कहा कि वे साल में एक बार अपनी जन्मभूमि अवश्य जाएंगे। स्कंदपुराण के उत्कल खंड के अनुसार, इंद्रद्युम ने आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को प्रभु को उनकी जन्मभूमि जाने की व्यवस्था की। तभी से यह परंपरा रथयात्रा के रूप में चली आ रही है।

भगवान जगन्नाथ का रथ– इसके तीन नाम हैं जैसे- गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष आदि। 16 पहियों वाला ये रथ 13 मीटर ऊंचा होता है। रथ के घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व है। ये सफेद रंग के होते है। सारथी का नाम दारुक है। रथ पर हनुमानजी और नरसिंह भगवान का प्रतीक होता है। रथ पर रक्षा का प्रतीक सुदर्शन स्तंभ भी होता है। इस रथ के रक्षक गरुड़ हैं। रथ की ध्वजा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाती है। रथ की रस्सी को शंखचूड़ कहते हैं। इसे सजाने में लगभग 1100 मीटर कपड़ा लगता है। 

बलभद्र का रथ इनके रथ का नाम तालध्वज है। रथ पर महादेवजी का प्रतीक होता है। इसके रक्षक वासुदेव और सारथी मातलि हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा इसके अश्व हैं। यह 13.2 मीटर ऊंचा और 14 पहियों का होता है। लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। रथ के घोड़े नीले रंग के होते हैं। 

सुभद्रा का रथ इनके रथ का नाम देवदलन है। रथ पर देवी दुर्गा का प्रतीक मढ़ा जाता है। इसकी रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन हैं। रथ का ध्वज नदंबिक कहलाता है। रोचिक, मोचिक, जीता व अपराजिता इसके अश्व होते हैं। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहते हैं। ये 12.9 मीटर ऊंचा और 12 पहियों वाला रथ लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों से बनता है। रथ के घोड़े कॉफी कलर के होते हैं।

रथयात्रा के रथ को मंदिर के 1172 सेवक ही खींचेंगे। इन सभी का कोरोना टेस्ट भी पहले ही कर लिया गया था, जिनमें सभी की रिपोर्ट नेगेटिव आई थी। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि एक रथ को 500 लोग से ज्यादा ना खींचे। 

Leave a Comment

You have successfully subscribed to the newsletter

There was an error while trying to send your request. Please try again.

EduInfoshare will use the information you provide on this form to be in touch with you and to provide updates and marketing.