Harshavardhan’S Kingdom(590-647CE)

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हर्ष और उसका काल( HARSHAvardhan’S KINGDOM-590-647CE)

Ø  वल्लभी में मैत्रकों ने स्वतंत्र वंश की स्थापना की.

Ø  स्थानेश्वर (या थानेश्वर) (यह शहर दिल्‍ली के उत्तर में कुरुक्षेत्र केवर्तमान हरियाणा राज्य में था) में पुष्यभूति वंश के वर्धन शासकों का राज्य उठ खड़ा हुआ.

Ø  कन्नौज में मौखरी, बंगाल में चंद्रशासक ओर मगध में गुप्तों की एक शाखा शासन करने लगी.

Ø   छठी शती के इस द्वंद्व में हर्षवर्धन को सर्वाधिक सफलता मिली और उसने अपनी सत्ता अनेक सामन्तों एवं राजाओं पर स्थापित कर लिया .

राज्यवर्धन की हत्या
Harvardhan’s Coin 606 -647 CE

Ø  606 ई० हर्षवर्धन स्थानेश्वर  के शासक बने.

Ø  पिता -प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के बाद उनके भाई राज्यवर्धन शासक बने थे.

Ø  मालवा  शासक देवगुप्त ने बंगाल के शासक शशांक के साथ मिलकर कन्नौज के मौखरी शासक गृहवर्मन की हत्या कर दी ओर उसकी पत्नी राज्यश्री को बंदी बना लिया. राज्यश्री थानेश्वर के तत्कालीन शासक राज्यवर्धन और हर्षवर्धन की बहन थी.उसे देवगुप्त को हराने में सफलता प्राप्त हुई परन्तु शशांक ने उन्हें अपने युद्ध शिविर में मित्रता का प्रदर्शन करते हुए आमंत्रित किया तथा गुप्त रूप से राज्यवर्धन की हत्या कर दी.

हर्ष ने अपनी बहन को बचाया

  • हर्षवर्धन ने  राज्यवर्धन की हत्या का शशांक से बदला लेने की प्रतिज्ञा कि.
  • उसकी बहन राज्यश्री शत्रु की कैद से निकलकर विन्ध्य के पर्वतों में भाग गई है. एक बौद्ध भिक्षु दिवाकर मित्र की सहायता से विन्ध्य के जंगलों में उसने राज्यश्री को तब ढूंढ़ निकाला, जब वह सती होने जा रही थी. . राज्यश्री ने अपना राज्य अपने भाई हर्ष को सौंप दिया.
  • हर्ष ने कन्नौज को अपनी नयी राजधानी बनाया तथा वहीं से सभी दिशाओं में अपनी सत्ता का विस्तार किया.

पाटलिपुत्र का महत्त्व घटा

पाटलिपुत्र  के दुर्दिन आ गए और कन्नौज प्रमुख हो गया. पाटलिपुत्र की शक्ति और महत्त्व राजधानी होने के साथ-साथ व्यापार-वाणिज्य तथा मुद्रा के व्यापक प्रयोग के कारण था.

  • उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में स्थित कन्नौज ऐसा ही एक स्थान था. उसे छठी शताब्दी के उत्तरार्ध से राजनीतिक श्रेष्ठता प्राप्त हो गई.(606-647CE)

बाणभट्ट

  • बाणभट्ट हर्ष का दरबारी कवि था.
  • बाणभट्ट की प्रसिद्ध रचना   1. हर्षचरितम्”  2. कादम्बरी 
  • यह एक काव्य ग्रंथों से हर्ष के बारे में विस्तृत जानकारी , तत्कालीन, सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति का भी ज्ञान  है.
  • यद्यपि में कवि कल्पना हर्षचरितम् का बहुत पुट है तो भी यह एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत है. इस ग्रंथ के कुल सात भाग हैं. प्रथम भाग में लेखक ने अपने परिवार तथा अपना परिचय दिया है. अन्य तीन भागों में हर्ष के पूर्वजों एवं थानेश्वर के राजवंश के इतिहास. अन्य दो भागों में हर्ष की विजयों तथा विन्ध्यवनों के रहने वाले धार्मिक-सम्प्रदायों का वर्णन मिलता है.

ह्वेनसांग

  • वह बौद्ध धर्म के ग्रन्थों का अध्ययन  एवं बौद्ध धर्म सम्बन्धी तीर्थस्थानों की यात्रा करने भारत आया था.
  •  हर्षवर्धन काल के भारत का वर्णन अपनी पुस्तक सियुकी में लिखा. “सियुकी “ उस समय के इतिहास को जानने के लिये बहुत विश्वसनीय साधन है.
  • ह्वेनसांग का जन्म 600 ई. में हुआ. 20 वर्ष की आयु में वह बौद्ध भिक्षु बन गया. वह भारत 629 ई० में आया. उसने भी करीब-करीब फाह्यान के यात्रा मार्ग को अपनाया. वह चीन से चला और गोबी रेगिस्तान (मध्य एशिया) को पार कर ताशकन्द, समरकन्द, बखल काबुल होता हुआ गान्धार, तक्षशिला, काश्मीर, पंजाब, थानेश्वर, दिल्ली और मथुरा होते हुए कन्नौज आया.
  •  वह हर्ष का अतिथि बनकर कुछ समय ठहरा. फिर उसने कई बौद्ध तीर्थ यात्रायें की जैसे सारनाथ, कपिलवस्तु, बौद्ध गया तथा कुशीनगर.
  • वह भारत में पन्द्रह वर्षों तक रहा तथा नालन्दा विश्वविद्यालय में उसने दो वर्ष व्यतीत किये. वह अपने साथ अनेक बौद्ध ग्रंथ तथा हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ ले गया.
  • जब वह चीन 644 ई० वापस पहुँचा तो उसका अत्यधिक स्वागत हुआ. उसके बाद भी अनेक चीनी यात्री भारत में आये. 664 ई० में इस विद्वान की मृत्यु हो गई. हर्ष के अभिलेखों में विभिन्‍न प्रकार के करों और अधिकारियों का उल्लेख है.

हर्षवर्धन की विजयें (CONQUESTS)

  • . ह्वेनसांग के अनुसार, उसने उत्तरी भारत के पांच प्रदेशों को अपने अधीन किया. – पंजाब, कन्नौज, गौड़ या बंगाल, मिथिला और उड़ीसा के राज्य थे.
  • पश्चिम में उसने वल्लभी के शासक ध्रुवसेन द्वितीय से भी अपना लोहा मनवाया. इसके अधीन पश्चिमी मालवा का राज्य भी था.
  • ध्रुवसेन द्वितीय के साथ उसने अपनी पुत्री का विवाह कर दिया और इस प्रकार एक शक्तिशाली मित्र प्राप्त किया.
  •  हर्ष को अनेक विजय प्राप्ति तथा विशाल साम्राज्य निर्माण करने के कारण उत्तर भारत का अन्तिम महान हिन्दू सम्राट कहा जाता है.
  • उसने नेपाल और कश्मीर को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण उत्तर भारत पर अपना अधिकार जमा लिया
  • . दक्षिणापथ के चालुक्य शासक पुलकेसिन द्वितीय के सम्मुख उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई.

प्रशासन (ADMINISTRATION)

  • हर्ष ने साम्राज्य प्रशासन को अधिक सामंती और विकेन्द्रित की.
  • शासन व्यवस्था को सुविधापूर्वक चलाने के उद्देश्य से तीन स्तरों – केन्द्रीय, प्रान्तीय तथा स्थानीय, पर विभाजित की
  • मंत्रिपरिषद-सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद होती थी. इस तथ्य की पुष्टि बाण और चीनी यात्री ह्वेनसांग दोनों ही करते हैं
  •  राज्यवर्धन के काल से ही प्रधानमन्त्री के रूप में भण्डि नामक व्यक्ति कार्य कर रहा था.
  • भण्डि ने राज्यवर्धन की मृत्यु के पश्चात् उत्तराधिकार के प्रश्न को तय करने के लिए अन्य मन्त्रियों की बैठक बुलाई थी तथा उसी सभा ने हर्ष को राजसिंहासन ग्रहण करने के लिए अनुरोध किया था.
  •  अवन्ति -युद्ध मंत्री,
  • सिंहनादसेनापति
  • कुन्तलघुड़सवारों की टुकड़ी का नायक
  • हाथियों की सेना का प्रधान- कुटक कहलाता था.
  •  ह्वेनसांग के विवरण से प्रकट होता है कि साधारणतया प्रशासकीय पदाधिकारियों को नकद वेतन नहीं मिलता था. उन्हें भूमिखण्ड दे दिए जाते थे. परन्तु सैनिक पदाधिकारियों को नकद वेतन दिया जाता था.

सेना

  • कहा जाता है कि हर्ष के पास एक विशाल सेना थी. उसके पास 1,00000 घोड़े, 600000 हाथी तथा करीब इतनी ही पैदल सेना थी
  • ऐहोल अभिलेख -युद्ध के समय सामान्यतः उसे प्रत्येक सामंत निर्धारित सैनिक सहायता देता था.

राजस्व या आय के साधन

  • राज्य की आय का सबसे बढ़ा साधन भूमि कर
  • किसानों से उपज का छठा भाग कर के रूप लिया जाता था. इसके अलावा चरागाह, खनिजों पर भी कर लगाया जाता था. चुंगी तथा नदी घाटों से भी आय प्राप्त होती थी.
  • चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार उसने राजस्व को चार भागों में बांटा हुआ था.
  • एक भाग राज्य के खर्च,
  • दूसरा भाग विद्वानों पर व्यय,
  • तीसरा भाग जन-सवा के लिए
  • चौथा हिस्सा धार्मिक कार्यो के लिए था. अधिकारियों को वतन के स्थान पर भूमि ही दान में दे दी जाती थी.

कानून और न्याय व्यवस्था

  • हर्ष के काल में दंड कठोर थे. परन्तु कानून की व्यवस्था अच्छी नहीं थी.
  • चीनी यात्री ह्वेनसांग को भी डाकुओं ने लूट लिया था. इससे पता चलता है कि आम जीवन और सम्पत्ति सुरक्षित नहीं थे. देश के कानून के अनुसार अपराध के लिए कड़ा दण्ड दिया जाता था.
  • राजद्रोह के लिए मृत्युदण्ड तथा डकैती के लिए दायां हाथ काट लिया जाता था.

प्रान्तीय तथा स्थानीय शासन

  • प्रान्तों को मुक्ति या प्रदेश कहते थे
  • . प्रान्त जिलों (विषयों) में बंटे थे.
  • प्रान्त मुक्तिपति तथा जिला विषयपति के अधीन थे.
  • गाँव का शासन सरकारी तौर से बहुत अच्छी तरह संगठित था और गाँव के शासन में गैर-सरकारी स्थानीय लोगों का भी काफी हाथ था.
  • गाँव का शासन “महत्तर नाम का अधिकारी करता था. वह गांव का सारा शासन चलाता था तथा ऊपर के अधिकारियों को गाँव की स्थिति से परिचित रखता था.

सामाजिक और आर्थिक जीवन (SOCIAL AND ECONOMIC LIFE)

  • गुप्तकाल में वर्णाश्रम व्यववस्था का जो पुनरुत्थान हुआ था वही इस काल में सामाजिक संगठन का आधार था.
  •  ह्वानसांग ने चारों वर्णों के वे ही कर्म बताए हैं
  • ब्राह्मणों के सर्वोच्च होने की बात भी कही है. उसके अनुसार, अपने ज्ञान तथा अच्छे आचार के कारण ब्राह्मण पवित्र और सम्मानित समझे जाते थे.
  • दूसरा वर्ण क्षत्रियों का था. इसकी भी ह्वानसांग बड़ी प्रशंसा करता है. वह लिखता है कि वे (क्षत्रिय) राजवंश की जाति के थे. वे दयालु और प्रजारंजक थे.
  • चीनी यात्री का कथन पूर्णतः सही है. केवल कुछ अपवाद रूप में ही कुछ राज्य गैर-क्षत्रीय जाति के थे. अन्यथा सभी राजा क्षत्रिय थे.
  • बाणभट्ट मूलतः सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी क्षत्रियों का उल्लेख करता है. इस काल के क्षत्रिय भी बड़े कर्तव्यपरायण और निष्ठावान थे.
  • बाण और हर्षवर्धन की रचनाएँ तथा अभिलेख साक्ष्य इस बात को सिद्ध करते हैं कि इस काल के अधिकांश क्षत्रिय ब्राह्मणों का सम्मान करते थे.
  • वैश्य वर्ग भी प्रभावशाली और समृद्ध था. ह्वानसांग के अनुसार वे सामान्यतः व्यापार में लगे हुए थे. वे देश तथा विदेशों में व्यापार एवं लेन-देन के लिए लम्बी यात्राएँ किया करते थे. हर्ष की रचनाओं से पता चलता है कि भारत का व्यापार श्रीलंका तक फैला हुआ था. व्यापार के अतिरिक्त वैश्य कृषि भी करते थे.
  • शूद्रों की अनेक जातियां थीं. निषाद, पारशव, पुक्कुस इत्यादि संकर जातियों का भी उल्लेख मिलता है. इनके अतिरिक्त शुद्रों की कुछ अन्य जातियां थीं – चाण्डाल, मृतप (मरे जानवरों को उठाने वाले) कसाई, मछुआ, जल्लाद इत्यादि.
  • इस काल में कुछ ही उद्योग उन्नत थे जैसे वस्त्र उद्योग. देश में सूती, ऊनी तथा रेशमी वस्त्र तैयार किया जाता था.
  • हर्ष के काल में जातिप्रथा के बन्धन कठोर थे तथा निम्न एवं उच्च जातियों में परस्पर खान-पान पर रोक लगी हुई थी.

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